चंद्रशेखर आजाद जी के बारे में रोचक ज्ञान सुनकर आप गर्व महसूस करेंगे

चंद्रशेखर आजाद जी के बारे में कौन नहीं जानता यह किसी परिचय के मोहताज नहीं है यह इस प्रकार की शख्सियत थे इनके जीवन के बारे में जानना अपने आप में ही एक रोचकता प्रदान करती है। चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) भारत स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे जिन्हें आजाद के नाम से भी जाना जाता था। आजाद (Chandra Shekhar Azad) का जन्म 23 जुलाई 1906 आदिवासी ग्राम भावरा में हुआ था जो मध्य प्रदेश में स्थित है। इनकी मृत्यु 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में हुआ था जिससे आज लोग चंद्रशेखर आजाद पार्क के नाम जाना जाता है। आज हम चंद्रशेखर आजाद जी की पुण्यतिथि पर इनसे जुड़े कुछ अनजाने तथा रोचक तथ्यों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। जिसे जानकार आप काफी अच्छा महसूस करेंगे।

मेरा नाम आजाद है और मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और पता कारावास है
चंद्रशेखर आजाद जी का नाम सीताराम तिवारी था। उन्होंने केवल 14 वर्ष की आयु में 1921 में गांधीजी के साथ असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया था। उनकी समझदारी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं जो वह इस आंदोलन में भाग लेने गए थे तब अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था और जब उन्हें जज के सम्मुख पेश किया गया। जज ने उनसे उनके पिताजी के बारे में कई प्रकार के सवाल किए थे तो चंद्रशेखर आजाद जी ने कहा “मेरा नाम आजाद है और मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और पता कारावास है” यह वही घटना है जिसके बाद से उन्हें चंद्रशेखर आजाद जी के नाम से कहा जाने लगा।

यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी थे जिन्होंने कई युवाओं को प्रेरित किया था। भगत सिंह पंडित राम प्रसाद व बिस्मिल क्रांतिकारियों के अनन्यतम में साथियों में से एक थे। महात्मा गांधी जी ने जब 1922 में असहयोग आंदोलन को समाप्त करने की घोषणा करी थी तब चंद्रशेखर आजाद जी के विचारधारा में परिवर्तन आ गया था और वह भारत के क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ गए और “हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन”के एक प्रमुख सदस्य भी बन गए।

जब है इस संस्था से जुड़े तब उन्होंने रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 9 अगस्त 1925 के दिन काकोरी कांड को अंजाम दिया था तथा गिरफ्तारी से बच जाए उसके लिए वह फरार हो गए थे।

जब जलियांवाला बाग गोली कांड हुआ था उसके पश्चात चंद्रशेखर आजाद जी अपने जन्म स्थान झाबुआ में आदिवासियों के साथ तीरंदाजी का प्रशिक्षण लिया था। आजाद जी हमेशा अपने साथ एक माउजर अर्थात ऑटोमेटिक पिस्टल अवश्य रखा करते थे।

आजाद जी अपने जीवन की हर एक तस्वीर को नष्ट कर देना चाहते थे क्योंकि वह चाहते थे कि उनकी कोई भी तस्वीर को अंग्रेजों के हाथ में ना लगे। जिस वजह से उन्होंने अपने एक मित्र को झांसी भेजा था ताकि वह अपनी तस्वीर वाली प्लेट को तोड़ सके किंतु वह टूट नहीं सकी।

खबर के अनुसार यह भी माना जाता है कि चंद्रशेखर आजाद जी रूस गए थे और वहां स्टालिन से मदद लेना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने जवाहरलाल नेहरु जी से 1200 की राशि की सहायता भी मांगी थी।

उनकी अंतिम मुठभेड़ इलाहाबाद के एक पार्क में पुलिसकर्मियों के साथ हुई थी। जहां पर उनको पुलिसकर्मियों ने घेर लिया था और गोलियां दागने शुरू कर दी थी। कई देर तक यह मुठभेड़ जारी रही थी और चंद्रशेखर आजाद जी पुलिस की गोलियों से बचने के लिए खुद को एक पेड़ के पीछे छुपाए रहकर गोलियां चलाते रहे।

झांसी के पास एक मंदिर स्थित है जहां पर चंद्रशेखर आजाद जी ने 8 फीट गहरी और 4 फीट चौड़ी गुफाबनाई थी। वह इस जगह पर एक सन्यासी के रूप में रह रहे थे। जब अंग्रेजों को उनके इस ठिकाने के बारे में पता चला था तब उन्होंने एक स्त्री का वेश बनाकर अंग्रेजों को चकमा दिया था और वह इस में कामयाब रहे थे।

केन्द्रीय असेंबली में बम
चन्द्रशेखर आज़ाद के ही सफल नेतृत्व में भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली की केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट किया। यह विस्फोट किसी को भी नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं किया गया था। विस्फोट अंग्रेज़ सरकार द्वारा बनाए गए काले क़ानूनों के विरोध में किया गया था। इस काण्ड के फलस्वरूप भी क्रान्तिकारी बहुत जनप्रिय हो गए। केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट करने के पश्चात् भगतिसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने स्वयं को गिरफ्तार करा लिया। वे न्यायालय को अपना प्रचार–मंच बनाना चाहते थे।

खुद को गोली मार ली
इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस ने उन्हें घेर लिया और गोलियां दागनी शुरू कर दी दोनों ओर से गोलीबारी हुई चंद्रशेखर आजाद ने अपने जीवन में ये कसम खा रखी था कि वो कभी भी जिंदा पुलिस के हाथ नहीं आएंगे इसलिए उन्होंने खुद को गोली मार ली। चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में में हुई थी।

पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिये चन्द्रशेखर आज़ाद का अन्तिम संस्कार कर दिया था। जैसे ही आजाद की बलिदान की खबर जनता को लगी सारा इलाहाबाद अलफ्रेड पार्क में उमड पडा। जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए थे लोग उस वृक्ष की पूजा करने लगे। वृक्ष के तने के इर्द-गिर्द झण्डियाँ बाँध दी गयीं। लोग उस स्थान की माटी को कपडों में शीशियों में भरकर ले जाने लगे। समूचे शहर में आजाद की बलिदान की खबर से जब‍रदस्त तनाव हो गया। शाम होते-होते सरकारी प्रतिष्ठानों प‍र हमले होने लगे। लोग सडकों पर आ गये।

इलाहाबाद के एक पार्क में ही उनका निधन हुआ, जब हमारा भारत आजाद हुआ तब उस पार्क को चंद्रशेखर आजाद जी के नाम पर रख दिया गया तथा साथ ही मध्य प्रदेश का वह गांव जिसमें वह रहा करते थे उसका नाम धिमारपुरा से तब्दील करके आजादपुरा रखा गया।